Posts

मोदी की गारंटी बनाम कांग्रेस का न्याय

सुरेश हिंदुस्तानी  लोकसभा चुनाव की तैयारी के बीच सभी राजनीतिक दल अपने अस्तित्व को प्रभावी बनाने के उद्देश्य को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। इतना ही नहीं विपक्षी राजनीतिक दल केवल वर्तमान सत्ताधारी दल के विरोध पर ही अपना पूरा फोकस करते हुए चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा एक बड़ी बात यह भी है कि भाजपा ने जहां मोदी की गारंटी को प्रमुख हथियार बनाकर अपने मन में विश्वास बनाया है, वहीं अब कांग्रेस भी इसका अनुसरण करने की नीति अपना रही है। भाजपा की ओर से मोदी की गारंटी के बाद कांग्रेस के राहुल गांधी अपनी पार्टी की 25 गारंटी जनता के सामने लाए हैं। इसके साथ ही कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र को न्याय पत्र का नाम देकर एक नई राह बनाने का काम किया है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस ने न्याय देने के वादे पर ही लड़ा था, लेकिन अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हुए। हम जानते हैं कि भाजपा ने 2014 के चुनाव में भारत के चाय वालों के साथ गहरा संबंध स्थापित किया था, इसी प्रकार 2019 के चुनाव में कांग्रेस के चौक़ीदार चोर है के जवाब में “मैं भी चौक़ीदार” का नारा देकर गरीब तबके को अपने साथ जोड़ा था। इस चुनाव में मोदी की ग

राजनीति में बदल रहे नैतिकता के मायने

भारतीय राजनीति में ऐसे कई उदाहरण दिए जा सकते हैं, जो आज भी नैतिकता के आदर्श हैं। लेकिन आज की राजनीति को देखकर ऐसा लगने लगा है कि नैतिकता की राजनीति दूसरा तो अवश्य करें, पर ज़ब स्वयं को नैतिकता की कसौटी पर परखने की बारी आए तब नैतिकता के मायनों को बदल दिया जाता है। भारतीय राजनीति में राजनेताओं पर आरोप लगने पर कई लोगों ने अपने पद को त्याग दिया था, दिल्ली के शराब घोटाले के मामले में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भारतीय राजनीति को अलग राह पर ले जाने का उदाहरण पेश किया है, हालांकि इस उदाहरण को आदर्श वादिता के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किए गए हैं। यह एक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले व्यक्ति के लिए शोभनीय नहीं हैं। केजरीवाल स्वयं कहते थे कि वे राजनीति में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए आए हैं, लेकिन अब ज़ब उन पर ही सवाल उठ रहे हैं, तब उनसे भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति की आशा करना बेमानी ही कही जाएगी। यहाँ सवाल यह भी उठ रहा है कि दिल्ली के शराब घोटाले में अभी तक जिन पर आरोप लग रहे हैं, उनको जमानत लेने का पर्याप्त आधार नहीं मिल रहा, इसका आशय

मतदान के प्रति जागरुक हों मतदाता

  मतदान के प्रति जागरुक हों मतदाता विश्व के सभी देशों में उसके नागरिकों के मन में अपने देश के प्रति असीम प्यार की भावना समाहित रहती है। इसी भावना उस देश की मतबूती का आधार भी होता है। जिस देश में यह भाव समाप्त हो जाता है, उसके बारे कहा जा सकता है कि वह देश या तो मृत प्राय: है या समाप्त होने की ओर कदम बढ़ा चुका है। हम यह भी जानते हैं कि जो देश वर्तमान के मोहजाल में अपने स्वर्णिम अतीत को विस्मृत कर देता है, उसका अपना खुद का कोई अस्तित्व नहीं रहता। इसलिए प्रत्येक देश के नागरिक को कम से कम अपने देश के बारे में मन से जुड़ाव रखना चाहिए। इजराइल के बारे में कहा जाता है कि वहां का प्रत्येक नागरिक अपने लिए तो जीता ही है, लेकिन सबसे पहले अपने देश के लिए जीता है। इजराइल में हर व्यक्ति के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है कि देश के हिसाब से अपने आपको तैयार करे। इजराइल का हर व्यक्ति एक सैनिक है, उसे सैनिक का पूरा प्रशिक्षण लेना भी अनिवार्य है। यह उदाहरण एक जिम्मेदार नागरिक होने का बोध कराता है। इसी प्रकार विश्व के सभी देशों में राजनीतिक नजरिया केवल देश हित की बात को ही प्राथमिकता देता हुआ दिखाई देता है। वहां

नव वर्ष : भारत का मनाएं, अंग्रेजों का नहीं

सुरेश हिन्दुस्थानी विश्व की महान और शाश्वत परंपराओं का धनी भारत देश भले ही अपने अपनी पहचान बताने वाली कई बातों का भूल गया हो, लेकिन कुछ बातें ऐसी भी हैं, जिनका स्वरुप आज भी वैसा ही दिखाई देता है, जैसा दिग्विजयी भारत का था। हम भले ही अपने शुभ कार्यों में अंग्रेजी तिथियों का उल्लेख करते हों, लेकिन उन तिथियों का उन शुभ कार्यों से कोई संबंध नहीं रहता। हम जानते हैं कि भारत में जितने भी त्यौहार उवं मांगलिक कार्य किए जाते हैं, उन सभी में केवल भारतीय काल गणना को ही प्रधानता दी जाती है। इसका आशय स्पष्ट है कि भारतीय ज्योतिष उस कार्य के गुण और दोष को भलीभांति प्रकट करने की क्षमता रखता है। किसी अन्य कालगणना में यह संभव ही नहीं है। वर्तमान में हम भले ही स्वतंत्र हो गए हों, लेकिन पराधीनता की काला साया एक आवरण की तरह हमारे सिर पर विद्यमान है। जिसमें चलते हम उस राह का अनुसरण करने की ओर प्रवृत्त हुए हैं, जो हमारे संस्कारों के साथ समरस नहीं है। अब नव वर्ष को ही ले लीजिए। अंग्रेजी पद्धति से एक जनवरी को मनाया जाने वाला वर्ष नया कहीं से भी नहीं लगता। इसके नाम पर किया जाने वाला मनोरंजन फूहड़ता के अलावा कुछ भ

अयोध्या : पुनरोदय है 'भारत' का

सुरेश हिंदुस्थानी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के पश्चात देश भर में जो वातावरण बना है, उसकी उमंग अभी बनी है और आशा की जानी चाहिए कि यह लहर निरंतर उठती रहेगी। राम नाम की महिमा से परिपूरित भारत भूमि पर इस बार की दीपावली कई मायनों में अपनी सार्थकता का प्रकटीकरण कर रही है। जिसमें पहली सारगर्भित बात हो यही है कि हम जिन भगवान राम के अयोध्या लौटने पर दीपावली मनाते, उनकी जन्म भूमि पर भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण होने लगा है। दूसरा सुखद संयोग यह भी है कि भारत राम राज्य की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। जिसकी पदचाप स्पष्ट सुनाई देने लगी है। एक कहावत भी है कि कोई पेड़ तब तक ही खड़ा रह सकता है, जब तक उसकी जड़ें भूमि में गहरे तक समाई हों। भारत की जड़ें बहुत गहरी हैं। वर्तमान में समाज को इस गहराई का अध्ययन अवश्य ही करना चाहिए। जब हम इसका सांगोपांग अध्ययन करेंगे तो स्वाभाविक रूप से हमें भगवान राम दिखाई देंगे। कहने का आशय यही है कि भगवान राम हमारे देश की जड़ हैं, हमारे देश की संस्कृति हैं। जो जड़ से कट जाता है, उसका विनाश हो जाता है। हमारा समाज आज जड़ों से जुड़ने की ओर अग्रसर हो रहा है… जो एक सुखद संदे

धूमिल होते विपक्षी एकता के प्रयास news in hindi

धूमिल होते विपक्षी एकता के प्रयास news in hindi : धूमिल होते विपक्षी एकता के प्रयास

मीडिया के लिए राष्ट्रीय नीति जरुरी

सुरेश हिंदुस्थानी एक कहावत है कि एक झूंठ को सौ बार प्रचारित किया जाए तो वह लगभग सत्य जैसी ही प्रतीत होने लगती है। भारत देश में लंबे समय से ऐसा ही कुछ होता दिखाई दे रहा है, जिसमें सच पर पर्दा डालने का कार्य किया जा रहा है। अभी हाल ही नई दिल्ली में भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक लाल किले पर कुत्सित मानसिकता वाले उपद्रवियों ने जो उत्पात मचाया, उसकी देश एक स्वर से निंदा कर रहा है, लेकिन कुछ समाचार चैनल आज भी यही प्रचारित कर रहे हैं कि वे किसान हैं और जो हिंसा हुई है, वह पुलिस ने की है, जबकि वीडियो क्लिपिंग में यह साफ दिखाई दे रहा था था कि ट्रैक्टर चालकों का उद्देश्य क्या था? वे पुलिस को चपेट में लेने के लिए उतावले थे। इतना ही नहीं उन्होंने पुलिस को पीटा भी। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि मार खाने की भी एक सीमा होती है। ऐसा लगता है कि देश के मीडिया को यह सब नहीं दिखा। सांस्कृतिक वातावरण से कोसों दूर जाने वाली हमारे देश की जनता भी इस झूंठ को सत्य मानने के लिए विवश हो जाती है। इसके परिणाम स्वरुप समाज के समक्ष गंभीर चेतावनी फन उठाकर खड़ी हो जाती हैं। लेकिन लम्बे समय बाद जब सत्य सामने आता है