अयोध्या : पुनरोदय है 'भारत' का

सुरेश हिंदुस्थानी
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के पश्चात देश भर में जो वातावरण बना है, उसकी उमंग अभी बनी है और आशा की जानी चाहिए कि यह लहर निरंतर उठती रहेगी। राम नाम की महिमा से परिपूरित भारत भूमि पर इस बार की दीपावली कई मायनों में अपनी सार्थकता का प्रकटीकरण कर रही है। जिसमें पहली सारगर्भित बात हो यही है कि हम जिन भगवान राम के अयोध्या लौटने पर दीपावली मनाते, उनकी जन्म भूमि पर भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण होने लगा है। दूसरा सुखद संयोग यह भी है कि भारत राम राज्य की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। जिसकी पदचाप स्पष्ट सुनाई देने लगी है।
एक कहावत भी है कि कोई पेड़ तब तक ही खड़ा रह सकता है, जब तक उसकी जड़ें भूमि में गहरे तक समाई हों। भारत की जड़ें बहुत गहरी हैं। वर्तमान में समाज को इस गहराई का अध्ययन अवश्य ही करना चाहिए। जब हम इसका सांगोपांग अध्ययन करेंगे तो स्वाभाविक रूप से हमें भगवान राम दिखाई देंगे। कहने का आशय यही है कि भगवान राम हमारे देश की जड़ हैं, हमारे देश की संस्कृति हैं। जो जड़ से कट जाता है, उसका विनाश हो जाता है। हमारा समाज आज जड़ों से जुड़ने की ओर अग्रसर हो रहा है… जो एक सुखद संदेश है।
अयोध्या के बारे में पुरातात्विक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो यह सर्वविदित है कि भगवान राम की पावन जन्म भूमि कोई सामान्य नगर नहीं है, वह सप्तपुरियों में प्रथम स्थान रखती है यानी सप्तपुरियों का केंद्र है। जो व्यक्ति वास्तु शास्त्र की गहरी जानकारी रखते हैं, वे वास्तु केंद्र के बारे में जानते हैं। वास्तु के अनुसार जब केंद्र ही समाप्त हो जाए तो उससे देश में नकारात्मकता का प्रादुर्भाव होता है। 
इस दौरान राम जन्मभूमि के बारे में बहुत लिखा जा चुका है, कुछ लेखों में इसे हिन्दुत्व का उभार बताया गया है, तो वहीं कुछ लोग इसे नवयुग का सूत्रपात बताने का प्रयास कर रहे हैं। वास्तव में यह न तो हिन्दुत्व का उभार है और न ही नवयुग का सूत्रपात ही है। इसे सनातन भारत का अभ्युदय अवश्य ही माना जा सकता है। सनातन भारत का जो स्वरूप था, उसने ही विश्व का मार्गदर्शन किया था यानी भारत विश्व गुरू था। वर्तमान वातावरण में भले ही इस बात को मजाक के रूप में लिया जा रहा हो, लेकिन हम ‘भारत’ का अध्ययन करेंगे तो हमें सनातन भारत का प्रकट रूप दिखाई देगा।
हम जरा विचार करें कि ‘भारत’ क्या है। वर्तमान में जो दिखता है, केवल वही भारत है या फिर कुछ और है। हम अपने आप से सवाल करें कि हम ‘भारत’ को कितना जानते हैं? यह भी अध्ययन का विषय है कि मुगलों के हमले के बाद भारत का मूल स्वरूप कितना सुरक्षित रहा। उसके बाद रही सही कसर अंगे्रजों ने पूरी कर दी। यानी मूल भारत उस समय तक बचा ही नहीं। अंगे्रजों की पराधीनता से स्वतंत्र होने के बाद जो भारत हमें मिला, वह वास्तव में वह ‘भारत’ था ही नहीं, जिसे सनातन भारत कहा जाता है। भारत का अध्ययन करना है तो हमें मुगलों और अंगे्रजों के कालखंड से पूर्व के भारत का दृश्य देखना होगा। उस ‘भारत’ में श्रीराम दिखाई देंगे, श्रीकृष्ण दिखाई देंगे। भारत के वे विश्वविद्यालय दिखाई देंगे, जो पूरे विश्व के उच्च शिक्षा के केन्द्र थे। जो गुरुकुल कहे जाते थे। गुरुकुलों में व्यक्ति को पारंगत बनाने की शिक्षा दी जाती थी, जो व्यक्ति का समग्र विकास करती थी।
वर्तमान में सत्य को असत्य बताने का सुनियोजित प्रयास चल रहा है, भारत में यह कुछ ज्यादा ही है। एक अभियान के तहत भारतीय जनमानस को उस अतीत से दूर किया जा रहा है, जो उसका मूल है। जो समुदाय अपने स्वर्णिम अतीत को भुला देता है, वह अपने स्वत्व से भी कट जाता है। यही भारतीय समाज के साथ हुआ।
भारत में सदैव से समभाव का वातावरण रहा है। समभाव भारत की जीवन पद्धति है। यहां का मूल स्वभाव है। इसी समभाव का फायदा उठाकर विदेशी आक्रमणकारी शक्तियों ने भय दिखाकर हिन्दू समाज के कुछ व्यक्तियों को धर्मान्तरित किया। सत्य को स्वीकारने का साहस होना चाहिए, लेकिन सत्य को विलोपित किया जा रहा है। जहां तक भारतीय मुसलमानों की बात है तो यह कहा जाना अत्यधिक प्रासंगिक होगा कि वह अपने पूर्वजों का शुद्ध मनोभाव से चिंतन करें, इस चिंतन के बाद एक स्थिति ऐसी भी बनेगी कि उन्हें राम और कृष्ण दिखाई देंगे। भारतीय जीवन मूल्य दृष्टव्य होंगे। सत्य यही है। इस सच्चाई को भारतीय मुसलमानों को समझना ही चाहिए। दूसरी बात यह है कि भारतीय मुसलमान जैसा व्यवहार अपने साथ चाहते हैं, वैसा ही उनको स्वयं भी करना चाहिए। हालांकि इसके पीछे इसी वर्ग के कुछ दिग्गज लोगों की साजिश यह है कि भारतीय मुसलमान अधिक संपन्न न हो सके। आज देश का अधिकांश मुसलमान सरकार की कृपा पर केन्द्रित होता जा रहा है। जो मुसलमान अपने आधार पर खड़े हैं, वे गरीब मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं।
मुसलमानों के नेतृत्व करने वालों को यह सच्चाई बताना ही चाहिए कि श्रीराम ‘भारत’ के ठोस धरातल हैं। जब विदेशी आक्रमणकारी बाबर पैदा भी नहीं हुए, तब से राम का अस्तित्व है और चिरकाल तक बना रहेगा। जहां तक अयोध्या के राम मंदिर का प्रश्न है तो इस पर विचार करना चाहिए कि भारत में ऐसी स्थितियां क्यों बनीं? हिन्दू समाज ने अपने आराध्य श्रीराम के उस स्थान की ही मांग की थी, जो जन्म स्थान था। विसंगति यह है कि आज भी वैसे स्वर मुखरित होते सुनाई दे रहे हैं, जो बाबर के विध्वंसकारी कदम का समर्थन करते हैं। मंदिर तोड़कर फिर से मस्जिद बनाने की खुलेआम वकालत की जा रही है। जबकि पुरातात्विक साक्ष्यों से यह प्रमाणित हो चुका है कि अयोध्या में मंदिर ही था, उसे तोड़कर ढांचा बनाया था। इसे बयान प्रथम दृष्टया सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को भी नकारने वाले ही लगते हैं। लेकिन अब देश में वैमनस्य वाली राजनीति का अंत हो चुका है। इसलिए हम सभी को चाहिए कि हम जिस गंगा जमुना संस्कृति की बात करते हैं, वह स्पष्ट परिलक्षित भी होना चाहिए।

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